नादान महल, लखनऊ – एक ऐतिहासिक धरोहर का जीवंत प्रतीक
श्रेणी: ऐतिहासिक स्थल
स्थान: यहियागंज, पुराना लखनऊ
पुराने लखनऊ की घुमावदार गलियों और ऐतिहासिक यहियागंज मोहल्ले के बीच स्थित नादान महल एक ऐसी विरासत है जो न केवल स्थापत्य सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि आध्यात्मिक आस्था और ऐतिहासिक गौरव का भी गवाह है। इस मकबरे को हिंदी में “मोक्ष का मकबरा” भी कहा जाता है, जो इसे एक दिव्य पहचान प्रदान करता है।
इतिहास की गहराई से – शेख अब्दुर रहीम का स्मारक
यह स्मारक मुगल सम्राट अकबर (1556–1605 ई.) के काल में अवध के सूबेदार रहे शेख अब्दुर रहीम की स्मृति में निर्मित किया गया था। वे न केवल प्रशासनिक रूप से कुशल थे, बल्कि एक अत्यंत धार्मिक और परोपकारी व्यक्ति भी थे। जनश्रुतियों के अनुसार, यहां प्रार्थना करने से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती थी, इसी कारण इसे “निदान महल” कहा जाने लगा, जो समय के साथ “नादान महल” में बदल गया।
वास्तुकला की विशेषताएं
नादान महल में मुगल स्थापत्य कला की उत्कृष्ट झलक मिलती है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इसका मुख्य मकबरा एक चबूतरे पर बना हुआ चौकोर कक्ष है, जिसके ऊपर भव्य गुंबद स्थित है। इसके चारों ओर एक खुला बरामदा है, जो इसकी गरिमा को और बढ़ाता है। इस कक्ष के भीतर दो संगमरमर की कब्रें हैं, जिन पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं और एक लाल पत्थर का मकबरा उन्हें चिह्नित करता है।
सोलह खंभों वाला मंडप – सोलह खंभा
मुख्य मकबरे के निकट ही स्थित है सोलह खंभा, जो कि एक ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ मंडप है। इसमें 16 पत्थर के खंभे हैं, जो पांच कब्रों को आश्रय देते हैं। यह मंडप जहांगीर काल की कलात्मक शैली का बेहतरीन उदाहरण है। यहां की नक्काशीदार पत्थर की शिलाएँ और बेल-बूटों से सजे खंभे स्थापत्य की पराकाष्ठा को दर्शाते हैं।
ऐतिहासिक मान्यताएं और अभिलेख
प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ 'आइन-ए-अकबरी' में अबुल फज़ल ने शेख अब्दुर रहीम का उल्लेख करते हुए उनकी महानता का वर्णन किया है। वहीं मुहम्मद अजमत अली नामी काकोरीवी ने अपनी कृति 'मुरक्का-ए-खुसरवी' (1866) में एक रोचक प्रसंग वर्णित किया है — जिसमें सम्राट अकबर ने शनि-दोष से बचने के लिए दो दिन के लिए राजगद्दी शेख को सौंपी थी। उन दिनों के दौरान शाही वस्त्रों में विषैला नाग निकला, जिसने अकबर की जान को खतरे में डाल दिया होता यदि गद्दी उनके पास होती।
पुरातात्विक संरक्षण
इस ऐतिहासिक धरोहर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है (सूचना क्रमांक: UP 1279/367-M, दिनांक 15.07.1910)। हालांकि समय की मार ने इसकी भव्यता को थोड़ा प्रभावित किया है, लेकिन यह आज भी लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बना हुआ है।